लगातार अंतराल पर होते शांतिपूर्ण निष्पक्ष चुनाव (Election) सही मायनों में लोकतंत्र की प्राणवायु की भांति होते हैं। हाल ही में उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव भाजपा के प्रचंड बहुमत पाने के बाद विपक्षी दलों ने मतदान में प्रयुक्त ईवीएम
पर ही निशाना साधना शुरू किया है। मायावती जी तो कोर्ट में भी पहुँच गयी हैं। किसी भी संभावना से इनकार करना तो ठीक नहीं पर फिर भी इसपर विचार करना जरूर प्रासंगिक है कि क्या वाकई इन मशीनों से छेड़छाड़ इस बड़े पैमाने पर संभव है। चुनाव आयोग ने उठे २९ प्रश्नों के
जवाब दिए हैं। बीबीसी
हिंदी ने भी इसकी पड़ताल की। डॉ.
गौरव कबीर सम्प्रति गोवा में कार्यरत हैं और पिछले एक दशक से अधिक समय में चुनाव निष्पादन में विभिन्न स्तरों पर जुड़े रहे हैं।
प्रस्तुत है इस विषय पर उनका*आलेख:
______________________________________________________________________________________
आजकल EVM के बहुत चर्चे हैं , और चर्चे तो इसमें गड़बड़ी करने के भी हैं । सोचता हूँ मैं भी इस मौके पर अपनी थोड़ी बहुत जानकारी आप सब से शेयर करूँ । जहाँ तक हो सके मैंने तथ्य ही प्रस्तुत किये हैं और ये बताना चाहा है कि आखिरकार EVM से सम्बंधित प्रक्रिया और इसकी कार्यशैली क्या है। आप भी अपनी जानकारी साझा कर के लोकतंत्र के इस औज़ार को संबल प्रदान कर सकते हैं या आप यह भी बता सकते हैं कि यह सुरक्षित कैसे नहीं है, इस सन्दर्भ आपके प्रश्नों का स्वागत है।
1- बेसिक तौर पर ईवीएम में दो मशीन होती है, बैलट यूनिट और कंट्रोल यूनिट। वर्तमान में इसमें एक तीसरी यूनिट Voter-Verified Paper Audit Trail (
VVPAT ) भी जोड़ दिया गया है, जो सात सेकंड के लिए मतदाता को एक पर्ची दिखाता है जिसमें ये उल्लेखित रहता है कि मतदाता ने अपना वोट किस अभ्यर्थी को दिया है। ऐसे में मतदाता बूथ पर ही आश्वस्त हो सकता है कि उसका वोट सही पड़ा है कि नहीं।
2- चुनाव से पूर्व राज्य में उपस्थित और दूसरे राज्यों से मंगाई गयी सभी EVM की जाँच का प्रावधान है । यह एक गहन जाँच प्रक्रिया है जिसमे हर एक EVM को सूक्ष्मता से जांच जाता है । कई बार EVM मशीन में खराबी हो सकती है, पर ऐसी ख़राब मशीन को ECIL के इंजीनियर के द्वारा ठीक कर दिया जाता है और ठीक न हो सकने की स्थिति में ख़राब मशीन को चुनाव प्रक्रिया से हटा कर ECIL के कारखाने में रिपेयर के लिए भेजा जाता है । प्रथम चरण की इस जाँच प्रक्रिया को FLC (First Level of
Checking) कहते हैं । FLC की यह प्रक्रिया कलेक्टर एवं डिस्ट्रिक्ट इलेक्शन अफसर के सामने ही होती है , यदि किसी कारण वह उपस्थित नहीं है तो कम से कम एडिशनल कलेक्टर रैंक का अधिकारी FLC में मौजूद रहता है ।
3 - इसके बाद सभी मशीनें पहले रैंडमआइज़ेसन हेतु तैयार हो जाती है ,इस प्रक्रिया में विधानसभावार EVM का चयन होता है तथा इन में से ही ट्रेनिंग और Demonstration के लिए भी मशीन चुनी जाती है ।
सब से महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि किस विधानसभा में कौन सा EVM ( CU + BU) जाना तय हुआ है इसकी सूचि राजनैतिक दलों को भी अनिवार्य रूप से प्रदान की जाती है । (यह दोनो प्रक्रियाएं राजनितिक दलों के प्रतिनिधियों के सामने होती हैं , जिस हेतु उन्हें विधिवत आमंत्रित किया जाता है ।)
4- पर्चा वापसी के बाद ही दूसरा रैंडमआइज़ेसन होता है जिसमे पोलिंग बूथ के अनुसार EVM का आवंटन होता है । इसके बाद प्रत्याशियों की उपस्थिति में ही EVM मशीन की कमीशनिंग होती है । इस प्रक्रिया में CU और BU का पेयर लगाया जाता है तथा EVM की पुनः जाँच होती है । इस दौरान ही BU में बैलट पेपर लगाया जाता है। तत्पश्चात EVM मशीनें सील की जाती है जिस से कोई छेड़खानी न होने पाए । (यह प्रक्रिया अनिवार्य रूप से ECI आब्जर्वर और प्रत्याशियों या उनके प्रतिनिधियों के सामने की जाती है। )
5- कौन सी EVM मशीन किस बूथ पर जानी है इसका पता पोलिंग पार्टी को एक दिन पहले डिस्पैचिंग के समय ही पता चल पाता है कि उसके पास किस सीरिज का ईवीएम आया है । ऐसे में अंतिम समय तक पोलिंग पार्टी के सदस्यों को पता नहीं रहता कि उनके हाथ में कौन सा EVM सेट आने वाला है।
6- फिर पोलिंग बूथ पर मतदान के पूर्व एक मॉक पोल होता है जिसमे कम से 50 मत डाल कर यह जाँच की जाती है कि EVM सही कार्य कर रही है या ख़राब है । इस प्रक्रिया में अगर 5 प्रत्याशी हैं तो 5 प्रत्याशियों और एक NOTA को बराबर-बराबर वोट डाल कर ( इस केस में प्रत्येक को 9 वोट ) रिजल्ट की जाँच की जाती है कि यह EVM सही कार्य कर रहा है या नहीं तथा इसका रिकॉर्ड भी रखा जाता है । यह प्रक्रिया उपस्थित पोलिंग एजेंट के सामने ही होती है तथा पोलिंग एजेंट का संतुष्टिपत्र पर हस्ताक्षर भी लेते है । उसके बाद ही मतदान शुरू होता है ।
7- हर मतदान केन्द्र में एक रजिस्टर बनाया जाता है, इस रजिस्टर में मतदान करने वाले मतदाताओं की डिटेल अंकित रहती है और रजिस्टर में जितने मतदाता की डिटेल अंकित होती है, उतने ही मतदाताओं की संख्या EVM में भी होती है। मतगणना वाले दिन इनका आपस मे मिलान पीठासीन अधिकारी (Presiding officer) की रिपोर्ट ( 17C ) के आधार पर होता है। मतदान समाप्ति के बाद 17C प्रारूप पर उपस्थित सभी पोलिंग एजेंट्स का हस्ताक्षर लेकर यह प्रारूप उनको भी दिया जाता है । जिस के बाद ही EVM सब की उपस्थिति में सील किया जाता है ।
8- इसके बाद EVM को एक पहले से तय किये गए स्ट्रांग रूम में स्टोर करते है जिसकी लॉक पर सभी प्रत्याशी अपना ताला भी लगा सकते है । यह स्ट्रांग रूम भी पहले से ही सभी प्रत्याशियों को दिखा दिया जाता है , जिस से वह स्वयं को संतुष्ट कर सकें । कहते है कि सब से नाजुक लॉक ही सब से विश्वसनीय होता है इसलिए दरवाजे पर पेपर सील भी लगाई जाती है जिस पर उपस्थित प्रत्याशी , ECI आब्जर्वर तथा अन्य व्यक्ति हस्ताक्षर भी करते है । स्ट्रांग रूम लॉक करने के बाद जिलाधिकारी या रिटर्निंग अफसर इसकी जिम्मेदारी केंद्रीय सुरक्षा बल को सौंप देते हैं । स्ट्रांग रूम की सुरक्षा केंद्रीय सुरक्षा बल तथा राज्य पुलिस दोनों मिल कर करते है । यहाँ त्रिस्तरीय सुरक्षा की व्यवस्था होती है , जिसमे बाहर के दो स्तरो पर राज्य की हथियारबंद पुलिस होती है जबकि सबसे अंदर के घेरे पर केंद्रीय सुरक्षा बल के जवान मुस्तैद रहते हैं । यहाँ प्रत्येक आने जाने वाले का ब्यौरा दर्ज किया जाता है । तथा 24 घंटे बिजली की व्यवस्था भी की जाती है ।
9- जिस बिल्डिंग में यह EVM लॉक किये जाते है वह हर तरफ से CCTV का इंतज़ाम होता है । जिसे राजनैतिक दलों के लोग कंप्यूटर पर देख सकते है । स्ट्रांग रूम के बाहर राजनैतिक दलों और प्रत्याशियों के लिए बैठ कर EVM की निगरानी करने देने के लिए इंतज़ाम भी किये जाते है । इस स्ट्रांग रूम का लॉक और पेपर सील कोई भी प्रत्याशी कितनी बार भी देख सकता है ।
10- फिर मतगणना के दिन यह स्ट्रांग रूम प्रत्याशियों और ECI आब्जर्वर के सामने ही खोला जाता है । स्ट्रांग रूम से मतगणना कक्ष तक EVM केंद्रीय सुरक्षा बल (CAPF) की निगरानी में ही ले जाया जाता है । मतगणना के समय प्रत्याशी के एजेंट वही 17C फॉर्म लेकर आते है जो उनको मतदान के दिन दिया जाता है , जिस से वह EVM क्रम संख्या और उसमें रजिस्टर हुए वोट की संख्या का मिलान भी करते है । उसके बाद ही वोट की गिनती होती है ।
उपरोक्त सभी प्रक्रिया की वीडियो रिकॉर्डिंग भी होती है जो उचित शुल्क देकर प्राप्त किया जा सकता है ।
इसप्रकार मशीन के साथ गड़बड़ी के अवसर लगभग नगण्य ही हैं, ध्यातव्य यह भी है कि किसी भी मामले में ईवीएम में टैंपरिंग सिद्ध नहीं हो पाई है। स्वयं चुनाव आयोग आम लोगों को आंमत्रित करता है कि वे लोग आयोग जाकर ईवीएम की तकनीक को गलत सिद्ध करने हेतु अपने दावे प्रस्तुत करें। लेकिन आज तक कोई भी दावा सही सिद्ध नहीं हुआ है।
महत्वपूर्ण कड़ियाँ:
*पूर्णतया लेखक के निजी विचार
|
0 comments:
Post a Comment
आपकी विशिष्ट टिप्पणी.....