नवोत्पल की यात्रा में दिवस गुरूवार की अप्रतिम महत्ता है । अभी यह तय हुआ कि एक विशेष कविता चयनित की जाए और उसे एक विशिष्ट सम्पादकीय टिप्पणी के साथ प्रति गुरूवार प्रकाशित की जाय । अपनी स्वरचित रचनाएँ प्रेषित करें नवोत्पल के लोकप्रिय फेसबुक समूह पर।
यह नवीन प्रक्रम प्रारम्भ हुआ है, वह किसी परंपरा का अनुसरण नहीं है। यह सर्वथा नवीन है। नवोत्पल की इयात्तानुरूप इसमें यह देखने की कोशिश है कि कैसे दो अलग-अलग लोग एक कविता को देखते हैं। समीक्षा या आलोचना प्राथमिक उद्देश्य नहीं है; भिन्न दृष्टिकोणों की उपस्थिति का दर्ज होना अभीष्ट है। इस क्रम में आलोचना अथवा समीक्षा संभव हो तो परहेज नहीं। नवोत्पल किसी टिप्पणीकार से वे कसौटियां नहीं कहता जिनपे टिप्पणी की जानी है, ताकि दृष्टिकोण की शुद्धता बनी रहे। हमारे लिए वह सहज टीप महत्वपूर्ण है, जिसे पाठक ने पढ़ते ही महसूस किया, बस।
यह नवीन प्रक्रम प्रारम्भ हुआ है, वह किसी परंपरा का अनुसरण नहीं है। यह सर्वथा नवीन है। नवोत्पल की इयात्तानुरूप इसमें यह देखने की कोशिश है कि कैसे दो अलग-अलग लोग एक कविता को देखते हैं। समीक्षा या आलोचना प्राथमिक उद्देश्य नहीं है; भिन्न दृष्टिकोणों की उपस्थिति का दर्ज होना अभीष्ट है। इस क्रम में आलोचना अथवा समीक्षा संभव हो तो परहेज नहीं। नवोत्पल किसी टिप्पणीकार से वे कसौटियां नहीं कहता जिनपे टिप्पणी की जानी है, ताकि दृष्टिकोण की शुद्धता बनी रहे। हमारे लिए वह सहज टीप महत्वपूर्ण है, जिसे पाठक ने पढ़ते ही महसूस किया, बस।
जन्नत
ReplyDeleteकश्मीर जिसे जन्नत उस रब ने बनाया,
सुंदर वादियों से इसे सजाया |
हर घाटी, हर झरना ,
हर पर्वत और उस पर बर्फ का गिरना |
इतनी सर्दी न देखी कहीं,
बर्फ पर चलना भी सीखा यहीं |
हर तरफ पहाड़, हर तरफ सुंदर नज़ारे,
रात में चमकते आसमान में लगते प्यारे सभी सितारे |
है केसर तो कहीं सेब के बाग,
देखी यहाँ लोगो के दिलों में सुलगती आग |
इस प्यारी सी नगरी को,
बना दिया क्यूँ जेल भला |
हर दिन होती यहाँ हड़ताल है,
मन में उठता ये सवाल है |
क्यूँ हर मोड़ पर खड़ा सिपाही है,
किस बात की आखिर ये लड़ाई है |
कर दे बंद ये झगड़ा,
इसी में सबकी भलाई है |
बाढ़ का यहाँ ऐसे आना,
उस खुदा की लगता रुसवायी है |
देखी यहाँ होते लाखों पेड़ों की कटाई है,
ये कश्मीर की कड़वी सच्चाई है |
ऐसे ही चलता रहा अगर,
तो कठिन हो जाएगी ये डगर |
समझा नहीं दिल ये मगर,
कब तक डरते रहेंगे लोग आने से श्रीनगर |
अब भी संभल गए हम अगर,
तो फिर से जन्नत बन जाएगा ये नगर |
फिर से जन्नत बन जाएगा ये नगर …
एक संजीदा कविता
DeleteKashmir mein kuch smay bitane ke baad ye mera nazariyaa h baki sbki apni soch or apna nazariya h
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