लोकतंत्र का साहित्य व साहित्य का लोकतंत्र
धीरे धीरे खोद रहा है सब।
सुन्दर अभिव्यक्ति। आभार।
बेजोड़ आर्जव....नही चाहिए अनगिनत शब्द...भावों के लिए..यकीनन..
Fir mitti me mil hi jana hai..ati sundar
dekhan me chhote lage ghav kare gambhir ....ko charitaarth karti hai aapki kavita......uttam
सुन्दर शाब्दिक उभार भावनाओं का।
शानदार चेतावनी ! आभार.. अभिषेक !
आपकी विशिष्ट टिप्पणी.....
धीरे धीरे खोद रहा है सब।
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति। आभार।
ReplyDeleteबेजोड़ आर्जव....नही चाहिए अनगिनत शब्द...भावों के लिए..यकीनन..
ReplyDeleteFir mitti me mil hi jana hai..ati sundar
ReplyDeletedekhan me chhote lage ghav kare gambhir ....ko charitaarth karti hai aapki kavita......uttam
ReplyDeleteसुन्दर शाब्दिक उभार भावनाओं का।
ReplyDeleteशानदार चेतावनी ! आभार.. अभिषेक !
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