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Monday, April 11, 2011
किर्र ..किर्र.....किर्र..किर्र
किर्र
..
किर्र
.....
किर्र
..
किर्र
लकड़ी
के दरवाजे
में नहीं
देह में
सुनो
कान लगाकर
अपनी सांस
.
.....
समय का घुन
अनवरत चर रहा है
तुम्हें
.......!
अभिषेक आर्जव
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