(१)
[ कविता जीवन और मैं ]
इन्द्रधनुष की जड़: छायाचित्र - आलोक रंजन |
डूबते क्षणों में
और किससे सहारा मांगता
कविता के पास गया
संबल और ढाढस के लिए
कोलाहल और संदेह
से भरे समय में
किसके पास जाता
मन की बात कहने
कविता ही मुझको
एक अपनी लगी
मां के जाने के बाद
दम घुटने लगा
जब जिंदगी के कमरे में
कविता ने हमेशा
उतना ऑक्सीजन उपलब्ध कराया
कि फेफड़े अकड़ न जाएं
मेरा होना
जिस हद तक भी बचा हुआ है
मेरे भीतर अगर थोड़ा बहुत भी मनुष्य शेष है
तो वह कविता का आभार है
मैं उतना ही अच्छा मनुष्य हूं
जितना अच्छा मैं कवि हूं
कविता ने मुझे दिया ही दिया है
बदले में मुझसे पाया किंचित ही है
समय तय करेगा
कि मेरे लगाए पौधे से
काव्य उपवन की शोभा
कुछ बढ़ी भी है या नहीं ।
(२)
[ प्रेम में स्त्री ]
प्रेम में स्त्री फूल हो जाती है
हल्की और महकी हुई
जीवन और उल्लास से भर पूर
नदी हो जाती है
प्रेम में स्त्री
किसी का भी मन
सरस हो जाता है
उसके समीप होकर
पक्षी हो जाती है
प्रेम में स्त्री
अस्तित्व के
सम्पूर्ण विस्तार में
अछोर उड़ती हुई
प्रेम से परे
उसका अस्तित्व ही
नहीं रहता कुछ भी
जब एक स्त्री
प्रेम में होती है
वह अपना होना तक
उस प्रेम पर वार देती है
प्रेम सहज घटित होता है
पर उसे स्वीकारते हुए
तबतक रुकती है स्त्री
जब तक मन पर
नियंत्रण रहता है उसका
अपने हृदय के बूंद बूंद
रक्त से
सींचती है स्त्री
प्रेम संबंध को
प्रेम की नाकामी का दुख
सह नहीं पाती एक स्त्री
जीते जी ।
(३)
[ झूठ बोलना ]
झूठ बोलना
एक आदत भी है
रोजमर्रा की
दूसरी आदतों की तरह
दूसरे ही नहीं
हम भी
इस आदत के मारे हुए हैं
कोई जरूरी नहीं
कि झूठ बोलने का
कोई ठोस कारण ही हो
सुना नहीं है आपने
खुद को बहुत बार
बेवजह झूठ बोलते हुए
झूठ बोलना
बहुत बार
बिगड़ी हुई चीज़ों को
ठीक भी करता है
कृष्ण की लीला भूल गए
महाभारत में
झूठ बोलना
बुरी आदत है
आज भी
सिखाते हैं हम
अपने बच्चों को
इस बात को
अच्छी तरह से
जानते समझते हुए
कि झूठ का सहारा लिए बिना
इस समय में
आगे बढ़ना
कितना मुश्किल है
(४)
[ स्त्री को पाना ]
उसकी देह तक पहुंचना
जब तुम्हारा लक्ष्य था
उसके मन तक
नहीं पहुंच पाने का
तुम्हें दुख क्यों है
देह से गुजरकर
तुम स्त्री की देह पा सकते हो
स्त्री का मन नहीं
स्त्री को पाने के लिए
स्त्री का मन समझना जरूरी है
स्त्री का मन
उसके मन में उतरकर ही समझा
जा सकता है
जैसे नदी में उतर कर नदी को
उसकी देह की नदी में
तमाम तरह से गोते लगाकर
देख लिया तुमने
सहस्राब्दियां गुजर गईं
पर पहुंच नहीं पाए तुम
उसके मन के घाट तक
उस तरह/रास्ते
स्त्री के मन तक पहुंचना
बहुत सरल है
उससे कहना कम कर दो
उसकी सुनना शुरू कर दो
वह देह नहीं मन भी है
देह जो है
वह मन से जुड़ा हुआ है
और मन में
दुनियां की तमाम
अच्छी बुरी कामनाएं भरी हुई हैं
वह जो है जैसी है
उसका होना
उसे जीने दो
तुम उसके लिए
मानक और सीमाएं
तय करना छोड़ दो
तुम उसके साथ
उसकी गति
और उसकी दिशा का
सम्मान करते हुए
मिल कर बह सकते हो
तो बहो
नहीं तो उसे बहने दो
अपनी लय में
तभी जान पाओगे तुम
एक स्त्री को
उसकी मौलिकता में ।
(५)
[ जिंदगी ऐसे भी जी जाती है ]
कौन क्या कर रहा है
क्या कह रहा है
से बेखबर
खोए थे दोनों
एक दूसरे में
मूक बधीर थे
संकेतों की भाषा में
खुद को अभिव्यक्त कर रहे थे
जरा सी बात कहने के लिए
बहुत से संकेत करते
पर इससे
एक जरा बोझिल नहीं थे
एक की
अभिव्यक्ति
अभी शेष नहीं होती
कि
दूसरा
आरंभ कर देता
संकेतों में पिरोना
मनोभाव अपने
कठिन था जीवन
पर कोई तिक्तता
कोई असंतोष
कोई अभाव बोध नहीं
मन में
पाए से
लबा लब भरे हुए थे
जीवन का स्वीकार
हर रूप स्वरूप में
आभार भाव से
होना चाहिए
कैसा भी कठिन हो मार्ग
नदी को सुर में बहना चाहिए
आंखों की भाषा
कहती थी उनकी
जीवन को ऐसे ही जीना चाहिए ।
________________________________________________________________________________