यूंइग क्रिश्चियन कालेज ( ईसीसी)
समय की रफ्तार का पता ही नही चलता , दिसंबर का आख़िरी दिन आ गया , एक और साल बीतने को है। बीतते साल के साथ जिेंदगी भी लगता है भाग रही है । हमें लगता है अभी बहुत समय है पर ऐसे ही जिंदगी बीत जाती है। इंसान केवल देख सकता है बंद आँखों से , कुछ पल जो अब नही जिये जा सकते , कुछ लोग जो अब नही हैं जीवन मे , कुछ ग़लतियाँ जो नही होनीं थी , और वह बहुत कुछ जो इंसान बदलना चाहता है बीते हुये कल मे ।
बीता कल हमेशा से बेहतरीन लगता है और इंसान हमेशा से बीते कल को दोबारा जीना चाहता है । इन्हीं ख़यालों मे आज फिर से जिंदगी के बीते पलों की किताब खोलने का दिल किया और अनायास ही मै डूब गया उन बीते दिनों मे जो अब बस यादों का रूप लेकर ही वापस आ सकते हैं । शायद अतीत हमेशा सुंदर ही होता है, या कहा जाये कि अतीत हमेशा वर्तमान से बेहतर प्रतीत होता है । इन्ही कशमकश मे डूबा हुआ मै , बीते दिनो को खोजता हुआ , यादों मे गोते लगाता हुआ , निकल पड़ा मै अपने शहर ...इलाहाबाद...।
मानो कल की ही बात हो जब मैंने यूइंग क्रिश्चियन कॉलेज मे एडमीशन लिया हो। स्कूल से निकलने के बाद जिस आजादी का अनुभव आप कालेज मे करते हैं, वह अनुभव मुझे यूंइग क्रिश्चियन कालेज मे मिला । ईसीसी के नाम से मशहूर मेरा यह कालेज इलाहाबाद के उन संस्थानो मे से है जो वाकई बेहतर शिक्षा के लिये जाना जाता है। अगर जीवन मे थोड़ा बहुत भी कुछ हासिल किया तो वह इसी स्नातक कॉलेज की देन है । कवि प्रदीप के कालजयी राष्ट्रगीतों को जननी यह कॉलेज हर इक विद्यार्थी के मस्तिष्क पर एक अमिट छाप छोड़ जाता है , कि उसके बाद वह कहीं भी जाये पढ़ने , याद उसे ईसीसी ही रहता है ।
एक अलग सा आकर्षण है इस कालेज मे , अलग सी बनावट है इसकी, एक अलग सा रोमांच है यहां पढने मे । यमुना नदी का किनारा,अंग्रेज़ी हुकुमत के समय की बनी इमारतें और कालेज के बीचोंबीच खड़ा बरगद का पेड़ जिसकी छांव मे बैठकर बहुत सी क्लासेज बंक की गई, जहां चाय के दौर चलते थे, जहां आजाद हवा थी , जहां आजाद ख्याल थे , जहां क्रांति की बातें भी हुई और जहां प्रेमगीत भी लिखे गये, और जहां देखे अनगिनत लडकों ने एक अच्छे जीवन का सपना ।
ऐसा ही एक अच्छे जीवन का सपना मेरे आजाद मन ने देखा था इस कालेज मे । वो सपना कितना पूरा हुआ यह तो मै नही जानता लेकिन एक बात का सुकून है लेकिन यहां के शिक्षकों द्वारा दी गई शिक्षा आज भी मुझे रास्ता दिखाती है । आज भी देख सकता हूँ खुद को साइकिल से कॉलेज जाते हुये , आज भी देख सकता हूं खुद को नोट्स बनाते हुये, आज भी देख सकता हूं खुद को रात भर पढते हुये, आज भी याद हैं वह सीढियां जिन्होने मंजिलें दिखाई , आज भी याद हैं वो पाठ जो जीवन के फलसफे बयान करते थे, और आज भी जीवित है वो जिजीविषा जो ईसीसी ने मुझमे जगाई ।
शायद हर लड़के का कालेज ऐसा ही होता है, शायद हर कालेज यही सिखाता है, शायद हर कॉलेज आपको तराशता है , शायद हर कालेज ईसीसी होता है , बस लोग किसी और नाम से याद करते हैं ।
आज घूम आया मै फिर से अपने कालेज , आज पी आया मै फिर से चाय की एक प्याली, आज सुन आया मै फिर से एक प्रेमगीत, और आज फिर से जी आया मै बीते हुये कुछ साल ...।
कल फिर एक नया साल आयेगा ,
कल फिर लोग ख़ुशियाँ मनायेंगे ,
कल फिर कॉलेज छूटे हुये सालों मे एक साल बढ़ जायेगा ...!!!
शेष फिर कभी...
@अंजनी कुमार पांडेय
लेखक भारतीय राजस्व सेवा २०१० बैच के अधिकारी हैं और वर्तमान मे प्रतिनियुक्ति पर विदेश मंत्रालय मे रीजनल पासपोर्ट ऑफिसर के पद पर सूरत मे तैनात हैं ।