बचपन से लेकर अनगिन पलों में सहसा कुछ ऐसा मिल जाता है पढ़ने को, देखने को या महसूस करने को, जो दिलोदिमाग पर छा जाता है, थमा रहता है ज़ेहन में। उससे जो सीखने को मिलता है वह हमारे सहज बोध का हिस्सा होकर हमारा मार्गदर्शन करता रहता है। 'आधारशिला ' में ऐसे गद्यांश, पद्यांश संजोने की कोशिश है जो अब क्लासिक बन चुके हैं, जिन्हें बार-बार पढ़ना नए-नए अर्थवत्ता के द्वार खोलना है।
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अनएडवरटाइज्ड
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आचार्य चतुरसेन शास्त्री
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