नवोत्पल गुरुवारीय विमर्श

 


Thursday, November 17, 2016

#2# साप्ताहिक चयन: स्मार्ट फोन की तितलियों में तितलियों से भी ज्यादा रंग हैं/ *दर्पण'

दर्पण शाह 'दर्शन'
एक तरफ अक्षरों से अठखेलियां करता युवा कवि: दर्पण शाह, जो साहित्य शिल्प के बंधनों को बुनते हैं, समझते हैं और बहुधा उनसे खेल जाते हैं: एक उन्मुक्त चितेरा----शब्द दर शब्द मन के परत दर परत पर दखल ; वहीं डॉ. गौरव कबीर सरकारी पशोपेश और जिम्मेदारियों के बीच बसता एक साहित्यिक रसिक ! इस बार #साप्ताहिककविताचयन में आइये पढ़ते हैं दर्पण शाह 'दर्शन' की कविता और उसपर विशिष्ट टिप्पणी की है गौरव कबीर जी ने ! -डॉ. श्रीश




"चूक गया हूँ
बहुत बड़े मार्जिन से
(Source: Google Image)

मैंने कोई ऐसी स्त्री तो नहीं देखी
जिसे दिल तोड़ने की मशीन कहा जाता है
मगर मैं जानता हूँ एक ऐसे शख्स को
जिसे आप उम्मीद तोड़ने की मशीन कह सकते हैं
जो घमंडी है, सेल्फ - ओब्सेस्ड है
हारा हुआ है (अनंत बार)
कुंठित है अस्तु
कितना सब कुछ है सोच में,
मग़र सब रिपीटेटिव
और अगर कुछ नया है भी
तो एक बिज़नेस प्लान
"अतीत में लिखे गए को एक रुपया प्रति शब्द कैसे बेचा जाय?"
अगर आज मैं स्त्री की बात करूँ तो वो रुग्ण होगी
अगर आज मैं चिड़ियाँ की बात करूँ तो उसके पंख मटमैले होंगे
अगर आज मैं गाँव की बात करूँ तो उस तक सड़क नहीं पहुंची होगी
अगर आज मैं क्रान्ति की बात करूँ तो वो जुटाए गए तथ्य और कोरी साख्यिकी होगी.
अगर आज मैं रात की बात करूँ तो वो चोर उचक्के, रेव पार्टीज़, हनी सिंह और माइग्रेन की बात होगी
शाम का मतलब मेरे लिए नेशनल हाइवे एट का जाम होगा
सुबह एक हैंगओवर होगी
दिन होगा हज़ारों स्ट्रगल और टारगेट एडहियरऐंस से लबरेज़
सरोकारों में ऍन. जी. ओ., चेरिटेबल म्यूज़िक नाईट्स, पेज थ्री और डोनेशन्स होंगे
इनमें से कुछ भी कविता नहीं
स्मार्ट फोन की तितली में तितलियों से ज़्यादा रंग हैं
ऍन. एस. डी. के नाटकों में संवेदनाओं से ज़्यादा आंसू हैं
फ़ेसबुक के स्टेटसों में सरोकारों से ज़्यादा विचार हैं
बारिशों में भीगने से ज़्यादा जतन हैं
पहाड़ों में घूमने से ज़्यादा डर
जब आपको अपनी नींद सबसे प्यारी लगे
समझ जाइए, वास्तविकता कुरूप हो चुकी है
जब आपको अतीत में रहना रुचिकर लगे
जान जाइए अपने वर्तमान की अप्रासंगिकता
जब आपको किसी की छोटी से छोटी सफलता से कोफ़्त होती हो
निश्चित है कि आप बुरी तरह से असफल हो चुके हैं
ख़ुशी की परिभाषा अब इतनी है बस कि
शरीर कही भी नहीं दुःख रहा
ये भी तो कई दिनों में एक बार नसीब होती है
मुझे मृत्यु से भी ज़्यादा डर परहेज़ से लगता है
चश्मा लग जाएगा कल
परसों हियरिंग एड्स
उसके अलगे दिन शायद हार्ट ट्रांसप्लांट हो
चाहे मैं अपनी मर्ज़ी से ताउम्र न खाऊँ भिन्डी
लेकिन वो नरक होगा मेरे लिए
अगर मेरी प्लेट से हटा दी जाय वो आज के बाद से
ताउम्र के लिए
न जाने कौनसी सिगरेट अंतिम हो
न जाने कौनसी सांस
आई. सी. यू. के बाहर ली गयी
अंतिम सांस हो
क्या पता किसी दिन उठूँ और
और
इस वजह से सोये रहना चाहता हूँ
इस वजह से अत्तीत में खोया रहना चाहता हूँ..!"




[ दर्पण शाह , गंभीर अलबेलेपन के कवि हैं; और यकीन मानिये जब जब आप उनकी कविताओं से रूबरू होते हैं वो आप को कभी निराश भी नहीं होने देते । *स्मार्ट फोन की तितलियों में तितलियों से भी ज्यादा रंग हैं* एक ऐसी ही कविता है

यह कविता बन सके रिश्तों के टूट जाने के भय को जाहिर करती है , ये एक हारे हुए इंसान के अतीत में ही रह जाने की इच्छा को दर्शाती है,और यहीं पर इसका जुड़ाव 1980 के बाद जन्मे युवा से हो जाता है , एक ऐसे युवा वर्ग से जो वर्तमान समय की सिर्फ वास्तविक बल्कि आभासी चुनौतियों से भी रोज़ जूझ रहा है आरम्भ से ही कविता हताशा और निराशा का एक ऐसा कॉकटेल प्रस्तुत करती है कि जिस में डूबा हुआ शख्स कभी बाहर भी आएगा , इसकी छटाँक भर भी गुंजाईश नहीं दिखती गुस्से और खीज से उपजी एक ऐसी स्थिति का बोध जहाँ से वापस लौटना असंभव है ।कविता अंत में हमें मृत्यु का मतलब समझाती है :

मृत्यु का अर्थ जीवन के साथ साथ हर तरह के संघर्ष का भी अंत। धीरे-धीरे क्रमशः ह्रास की जगह मृत्यु ही भली। एक एक अंग और एक एक शौक का मरना ही दु: है। अतः यूँ तिल तिल मरने से बेहतर तो एक हसीन मौत को गले लगाना है

कविता की इन पंक्तियों में तो यथार्थ अपनी पूरी कसावट के साथ उभरता है:



“बारिशों में भीगने से ज़्यादा जतन हैं

पहाड़ों में घूमने से ज़्यादा डर

जब आपको अपनी नींद सबसे प्यारी लगे

समझ जाइए, वास्तविकता कुरूप हो चुकी है

जब आपको अतीत में रहना रुचिकर लगे
जान जाइए अपने वर्तमान की अप्रासंगिकता
जब आपको किसी की छोटी से छोटी सफलता से कोफ़्त होती हो
निश्चित है कि आप बुरी तरह से असफल हो चुके हैं ।”

कविता के मध्य में इसकी कसावट बहुत बेहतरीन है और अगर कोई कविता हिस्सों में भी बांटी जा सकती, तो कविता का यह हिस्सा ही मुझे सबसे ज्यादा पसंद होता कविता में दी गयी उपमाएं और उनका प्रयोग बहुत अनोखा है दर्पण गहरा लिखते है, शायद इतना गहरा कि उनकी लिखी पंक्तियां जितनी बार पढ़ी जाये उतने ही अर्थ प्रकट करती है , पर पिछली बार पढ़ने में जो अर्थ आपने समझा होगा वो अर्थ भी कायम रहता है हर बार एक नया आयाम जुटता है संभव है, अर्थ के अन्य कई वितान और भी बनें जबकि इसका पुनः पुनः आस्वादन किया जाय ।

                                                    
                                                                 (डॉ. गौरव कबीर )




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