युनिवर्सिटी रोड ...
श्री अंजनी पांडेय |
अगर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी एक शरीर है तो यूनिवर्सिटी रोड इसकी आत्मा है ... अगर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी एक दिल है तो यूनिवर्सिटी रोड उसमे उपजा पवित्र प्रेम है...अगर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी एक पुष्प है तो यकीनन इस पुष्प की महक सबसे ज्यादा युनिवर्सिटी रोड पर बिखरी मिलेगी....। चाहे कितनी भी उपमाओं को समेट लिया जाये ...यूनिवर्सिटी रोड पर निरंतर फैले जीवन के रंगों को समेटना यकीनन नामुमकिन है...ऐसी है इलाहाबाद की युनिवर्सिटी रोड...सपनों की रोड ...मेरी रोड...मेरे दोस्तों की रोड...इलाहाबाद के हर स्टूडेंट की रोड....।
शायद इसी रोड पर चलते हुये धर्मवीर भारती ने गुनाहों के देवता को जिया होगा ...शायद यहीं कहीं महादेवी ने अपने प्रेम को खोया होगा ...शायद यहीं कही बच्चन ने प्याले छलकाये होंगे...और शायद यहीं कहीं फिराक गोरखपुरी ने मौसम की शरारत को महसूस किया होगा... इतने महान लोगों को जिसने अपने सीने पर जगह दी हो...वह रोड ही कालजयी ग्रंथों की रचना की साक्षी हो सकती है ...और यकीनन ऐसी रोड मामूली नही हो सकती....।
संभवतः आज वो महान लोग नहीं हैं इस दुनिया मे ...लेकिन उनके जीवन से प्रेरणा लेने वाले आज भी बहुतेरे हैं...आज भी जब कोई किशोर गोरखपुर के किसी गांव से इलाहाबाद पढने आता है तो उसे पता होता है कि उर्दू का बेमिसाल शायर फिराक गोरखपुरी इसी जगह से संघर्ष करके इलाहाबाद युनिवर्सिटी के इंग्लिश डिपार्टमेंट का हेड बना ... आज भी जब कोई लड़का प्रतापगढ की किसी बस्ती से निकलकर यहां पहुंचता है तो वह जानता है कि हरिवंश राय को बच्चन इसी माहौल ने बनाया ....जब कोई लड़की घर से बाहर निकलकर भरी सड़क पर अकेली निकलती है तब वो जानती है कि नीर भरी दुख की बदली महादेवी वर्मा प्रयाग विद्यापीठ की प्राचार्या थी...और शायद यही सब बातें यहां के स्टूडेंट्स को संबल प्रदान करती हैं...और शायद यही है कारण यहां के विद्यार्थियों के जुझारूपन का...और शायद यही है वजह की जीवन के हर पाठ को बखूबी से समझने की हिम्मत इस रोड से गुजरने वाला हर संघर्षशील युवक रखता है ....और शायद यही संघर्ष हर इलाहाबादी विद्यार्थी को आसमानो से भी ऊपर ले जाता है ।
आज भी मै देख सकता हूँ मै अपने आप को ... युनिवर्सिटी रोड पर एवन साइकिल से जाता हुआ ...सत्रह साल का संघर्षरत लड़का... कभी अकेला...कभी दोस्तों के साथ... कभी भीड़ मे...कभी तन्हाई मे... कभी सर्दियों मे एक रूपये की चाय के लिये चाय की दुकान पर इंतजार करता...कभी गर्मियों मे रोड के किनारे छांह ढूंढता...कभी सपनों मे जीता हुआ....कभी जीवन मे सपने देखता...कभी दोस्तों के साथ मस्ती कर्ता ...कभी प्रेमगीत गाता कवि बनता....।
कितने ही पूरे होते सपनों की गवाह है यह रोड ...कितने ही बिखरे सपनों का दर्द लिये है यह रोड... कितने ही प्रेम पनपे यहां पर ...और शायद कितनी नदियां बही विरह की यहां... शायद यही जीवन है ...और शायद यही हैं जीवन के रंग...इन सबको अपने मे समेटे युनिवर्सिटी रोड आज भी जीवन को नये मायने प्रदान कर रही है ....।
आज फिर गुजरा हूँ युनिवर्सिटी रोड से...
आज फिर एक सपना देखा किसी किशोर ने...
आज फिर मिला धर्मवीर के चंदर से...
आज फिर एक सुधा विरह मे थी...
आज फिर एक शाम मधुशाला के नाम...
आज फिर गुजरा हूँ युनिवर्सिटी रोड से ...!
शेष फिर कभी.
@अंजनी कुमार पांडेय
पुराछात्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय
लेखक भारतीय राजस्व सेवा २०१० बैच के अधिकारी हैं और वर्तमान मे प्रतिनियुक्ति पर विदेश मंत्रालय मे रीजनल पासपोर्ट ऑफिसर के पद पर सूरत मे तैनात हैं ।