नवोत्पल गुरुवारीय विमर्श

 


Sunday, March 19, 2017

जब आप कुछ लिखते रहते हैं....अभिषेक आर्जव



Abhishek K. Arjav

जब आप कुछ लिखते रहते हैं.... कुछ भी... कविता कहानी क्रांति निबन्ध अचरा कचरा या कुछ भी... तब आप एक अलग तरह के आत्मविश्वास से लबरेज होते हैं। 


वह आत्मविश्वास संजीवनी जैसा होता है| इससे दो अच्छी चीजें होती है। पहली ये कि तमाम दुनियावी झंझावातों के बीच अपने आप को बनाए रखने की कोशिश आसान हो जाती है। दूसरे ये कि अपने गिरेबान में झांक कर अपने नग्न व तुच्छ यथार्थ के प्रति अपनी जबावदेही को भुला देने का एक रास्ता निकल जाता है। इस प्रकार लेखक होने का नशा अफीम से भी तगड़ा है।

P. S. लेखन या सृजन वही वास्तविक है जिसमें मानवीय ज्ञान या संवेदना के किसी नये फलक का आविष्कार हुआ हो। और यह आविष्कार पूर्व ज्ञान वृत्तों व भाव बिम्बों के परिष्करण का परिणाम हो। इसके अलावा बाकी सब कउवा उड़ तोता उड़।

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