दिनांक
27-2-2018 को ‘आउट ऑफ कांटेक्स्ट बुक क्लब’ ने पणजी , गोवा मे श्री उदय प्रकाश जी की लिखी हुई कहानियों (दिल्ली की दीवार , मोहन दास और मैंगोसील ) के त्रि-भाषीय पाठ का आयोजन किया । हिन्दी मे लिखी
मूल कहानियों, श्री जैसन ग्रुंबाम द्वारा किए गए अङ्ग्रेज़ी
अनुवाद (The Walls of Delhi ) तथा जर्मन अनुवाद का का पाठ क्लब
के सदस्यों ने किया। इस अवसर पर श्री उदय
प्रकाश के रचना कर्म तथा भारतीय साहित्य मे उनके योगदान पर भी चर्चा की
गई ।
कार्यक्रम
का आरंभ अतिथि परिचय एवं स्वागत से सुश्री अर्चना नाग्वेंकर ने किया , उन्होने
क्लब के बारे मे बताते हुए कहा कि इस क्लब के पाठों मे पुस्तक पढ़ कर आने कि
अनिवार्यता चर्चा को भटकने नहीं देती तथा विषयांतर से बचा कर रखती है । इस अवसर पर श्री जैसन ने मिशिगन, अमेरिका से ही क्लब के लिए एक विशेष वीडियो संदेश भी भेजा था , जिसे सुधिजनों को दिखाया गया ।
सभागार का लेखक और अनुवादक से परिचय डॉ गौरव कबीर ने करवाया उन्होने The Walls of Delhi पुस्तक की सभी तीन
कहानियों को संक्षेप मे प्रस्तुत किया तथा
दर्शकों को कहानी के पात्रों, काल और विषय से भी परिचित
करवाया। उन्होने श्री जैसन को अङ्ग्रेज़ी अनुवाद के लिए विशेष रूप से धन्यवाद
ज्ञापित किया क्यूँ कि अङ्ग्रेज़ी ही क्लब की सार्वभाषा है जिसकी वजह से इस पुस्तक
पर चर्चा संभव हो पायी।
Dr. Barbara, Archana & Gaurav Kabeer |
दिल्ली की
दीवार : एक नए प्रकार का लोकतन्त्र और अंजाना सा समाज जो हमारे आप
के आसपास ही कहीं बसता है का सच्चा रूप है
ये कहानी । एक निर्वासित मजदूर राम निवास पसिया जिसे दक्षिणी दिल्ली के एक अमीर
इलाके में स्थित खाये अघाए लोगों की चर्बी घटाने वाले एक जिम
की खोखली दीवार से अकूत दौलत का पता लगता है। इतनी दौलत उसकी ज़िंदगी बदल देती है । अपनी
नाबालिग प्रेमिका के साथ आगरा पहुंचने पर एक टॅक्सी वाले द्वारा फंसा दिया जाता है
और फिर वापस दिल्ली आकार उसे हासिल होती है एक गुमनाम मौत ।
मोहनदास : निम्न जाति
का एक मृदुभाषी संस्कारी लड़का मोहनदास, जो अपनी पूरी जमात मे पहला BA है लाख कोशिशों के बावजूद भी बेरोजगार है। एक इंटरव्यू के बाद बहुत उम्मीद
पाल कर घर आता है , पर वो नौकरी भी उसे नहीं मिलती । कुछ साल
बाद उसे पता लगता है की उसकी पहचान पर कोई और नौकरी कर रहा है , ये आदमी कोई और नहीं उसके बचपन का दोस्त है । अपनी नौकरी वापस पाने के
लिए मोहनदास का संघर्ष और बार बार उसका हार जाना। कहानी का अंत बहुत दुखद है। इस कहानी बीच-बीच में आने वाला उप-पाठ समसामयिक अपवादों का ऐसा सजग दस्तावेज उपस्थित करता है जिससे पाठक सहसा स्तब्ध हो सच महसूसता रहता है।
मैंगोसील : महाराष्ट्र का
एक गरीब जो अब शहर मे आ चुका है एक ऐसे
बच्चे का बाप बनता है जिसका सर, शरीर के अनुपात मे कुछ ज्यादा ही बड़ा होता जा रहा है । बड़े सर वाला ये बच्चा
विलक्षण दिमाग का मालिक है । इस बच्चे के दिमाग मे दुनिया भर की जानकारी इकट्ठी हो
रही है और साथ ही साथ अपने अनुभवों और
दृष्टि से अद्भुत सिद्धांत भी गढ़ और समझ पा रहा है।
परिचर्चा
तत्पश्चात पुस्तक पर अपनी बात कहते हुए लेखक, अनुवादक तथा वुड्सबर्ग विश्वविद्यालय की
व्याख्याता डॉ बारबरा लोट्ज़ ने
बताया कि उदय प्रकाश जर्मनी मे सबसे ज्यादा पढे जाने वाले समकालीन भारतीय लेखक हैं तथा उनकी सभी कृतियाँ जर्मन भाषा
में भी उपलब्ध हैं। उन्होने कहा कि उदय जी उन लोगों को स्वर प्रदान करते हैं
जिनकी शायद कोई भी सुनना नहीं चाहता है । अनुवाद की परेशानियों का ज़िक्र करते हुए
उन्होने बताया कि शब्द के स्थान पर शब्द रखना अनुवाद नहीं बल्कि मूल परिवेश को
महसूस करवाना ही सफल अनुवाद है। उदय जी की रचनाओं के सैकड़ों अनुवाद उनकी स्वीकार्यता और उनके
कथ्यशिल्प की सफलता का जीवंत उदाहरण हैं।
डॉ तनया नाईक ने कहा कि उदय जी की कहानियाँ ज़मीन के के इतने करीब हैं
की कई बार उम्मीदों से बहुत दूर निराशा में ले जाती हैं। निराशा मे डूबी इन
कहानियों को कई बार बंद करने के बावजूद पाठक इन्हें बार बार पढ़ता भी है ।
प्रसिद्ध आर्किटेक्ट हयासिंत पिंटों ने
इन कहानियों को 60 फीसदी भारत का सच और व्यवस्था को आईना दिखाने वाली बताया।
ब्रिटिश
पाठक इयान मैकलेन ने मोहनदास को अपनी पसंदीदा कहानी बताया तथा किताब में वर्णित
भ्रष्टाचार पर हैरानी जताई । कहानी में पात्रों के चयन की विशेष रूप से तारीफ की
।
डॉ गौरव कबीर ने कहानी कहने के अंदाज़, शब्दो
के चयन और भाषा पर लेखक की पकड़ की तारीफ करते हुए, इन
कहानियों को पीढ़ी दर पीढ़ी पढ़ी जाने वाली कहानियाँ बताया । ‘सुनो
कारीगर’ से ‘जज साहब’ तक के लेखन का ज़िक्र करते हुए उन्हों ने
कहा कि विभिन्न परिस्थितियों को दर्शाते
हुए कहानियाँ लिखने वाले कथाकार और कवि श्री उदय प्रकाश आलोचना के किसी खांचे में फिट
नहीं बैठाये जा सकते।
Eric Pinto |
एरिक पिंटों ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए दिल्ली की दीवार कहानी में पहले चैप्टर को विशेष रूप से सराहा और कहा कि जब अनुवाद इतना बेहतर है मूल कितना उम्दा होगा ।
परिचर्चा का समापन करते हुए सुश्री अर्चना नागवेकर ने कहानियों के साथ चल रहे परिदृश्य और लेखक की सूक्ष्म से सूक्ष्म बातों पर ध्यान देने की कला को अप्रतिम बताया ।
इस अवसर पर वेल्लेरी , अरविंद, आरती, एनमैरी , ट्रावोर, डैनिश , विनय, शैलेश , सपना , एड्रियन डी कुनहा आदि गणमान्य व्यक्ति तथा क्लब के सदस्य उपस्थित रहे ।
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