मन्नत अरोड़ा |
कुछ लोगों को आदत सी होती है पहले गड्डा खोद के छलांग लगाने की और फिर बचाओ-बचाओ कहने की। बस यही कुछ आदत मेरे पति को भी थी। सो मेरे बहुत बार कहने पे भी न तो लॉकर की चाबी ली गयी और न कानूनी कागज़ ही पूरे किए जबकि बड़े भाई ने वक़्त रहते सब करवा लिए। दिन-ब-दिन मेरा ही अपने घर में रहना मुश्किल होता गया क्योंकि मेरे बच्चे छोटे और बीमार माँ, सबका आना-जाना और पता नहीं क्या-क्या।
पूरी कोशिश की जा रही थी कि मुझे काम से ही फुर्सत न मिले–बहनों और बाकियों की।
न पति को कुछ दिखाई दे रहा था न माँ को।
दिवाली का दिन था। तबियत ज्यादा बिगड़ गयी माँ की।दोनों बहनों और भाई सबको फ़ोन कर दिए गए कि तबियत खराब है।आके मिल लो।सभी आ गए।पूजा भी नहीं कर पाए हम। किसी तरह डॉक्टर को बुलाया तो उसने कुछ इंजेक्शन और दवा दी और कहा कि आज त्यौहार है तो हॉस्पिटल में डॉक्टर नहीं मिलेंगे। कल सुबह ही फिर से chemotherapy की जायेगी। इस से पहले दो बार इसका कोर्स हो चुका था पर हर बार ठीक हो के एक महीने बाद ही फिर से वो ही हालत हो जाती थी। डॉक्टर के जाने की देर थी बस अब सब को था कि घर से आ गए हैं। वापिस नहीं जाएंगे। पूजा चाहे नहीं हो पाई।यही बैठ के महफ़िल जमाएंगे। जुआ खेलेंगे रात भर।
दो-तीन दोस्त भी बुला लिए गए।
मेरा कमरा भी बुक कर लिया। मैंने मना किया और कहा मुझे यह सब पसंद नहीं।पर पति ही जब उनके साथ बैठ गया तो क्या करती।दोनों जवायीं जो एक दूसरे को सारी उम्र घूरते ही आये थे।वो भी साथ बैठ कर खेलने लगे। मुझे कहा गया कि खेलना तो है नहीं तो चाय बना के लाओ रात भर। मुझे गुस्सा तो बहुत आया।मैंने कहा चाय बस एक बार बना दूँगी बाकी सारी रात सामान रसोई में है तो कोई भी जाके बना ले। मैं सोने जा रही हूँ।
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दूसरों पे छींटा कशी करने वाले अक्सर खुद ही मुजरिम होते हैं। शगुन-अपशगुन के फेर में रहने वाला मेरा पति और उसके भाई-बहिन शायद कोई शगुन मना रहे थे या शोक सभा का कोई नया रूप था यह। समझ से बाहर था मेरे। सारी रात जागने के बाद बाहर वाले कब गए और कौन कहाँ सोया मालूम नहीं। सुबह उठी तो देखा कि यहाँ वहां जहाँ जगह मिली बहनें-बच्चे सोए हुए थे।बाकी सब जा चुके थे अपने घर सोने। अब नींद में थे सारे।कोई उठे तो माँ को हॉस्पिटल ले जाने की तैयारी हो।
तो वो सारा दिन यूँ ही बीत गया।
औरत को सारी जिंदगी अपने सही होने का प्रमाण देना ही पड़ता है। आखिर एक 70-75 साल की डायबिटिक पेशेंट जिसको दो बार कीमोथेरेपी के दौरान हार्ट अटैक भी आ चुका था और कीमोथेरेपी नहीं झेल पायी। हालत बिगड़ गयी और दूसरे दिन वो चल बसी। इसी दौरान घर और हॉस्पिटल में माँ के कपड़े आते-ले-जाते हुए बड़ी बहिन ने पहले माँ की अलमारी की चाबी गायब की और फिर मेरे लॉकर की चाबी भी जो उन्हीं (माँ)की अलमारी में थी। मेरे पति की आँखें तब खुली जब बैंक में चाबी गुम जाने की complain के एक महीने बाद लॉकर तोड़ा गया और वो खाली निकला।कुछ इन्क्वायरी करने पे मेनेजर ने बड़ी बहिन के हस्ताक्षर दिखाए जिस पे माँ के मरने के 5 दिन बाद की तारीख थी। मैं अभी इस सदमे में ही थी कि पति ने इलज़ाम लगाया कि घर नहीं सँभाला गया तुमसे।
शाम तक फिर सारे इक्कठे हुए तो कहने लगे कि कल भाई-दूज है तो कल इसकी रस्म के बाद हॉस्पिटल चलेंगे। डॉक्टर ने तो कह दिया था हॉस्पिटल का पर माँ के शरीर में खून आगे ही इस बीमारी के इलाज के चलते सूख चुका था।पर डॉक्टरों की भी माननी ही पड़ती है आजकल।और नहीं तो रिश्तेदार ही कह देते हैं कि इलाज नहीं करवाया गया। अगला दिन भी आ गया और बहनें भी गाना गाती हुई कि भैया मोरे राखी के बंधन को निभाना...! और मेरे पति देव भी खुश अपनी बहनों के प्यार से। खूब नौटंकी के बाद आखिर माँ के हॉस्पिटल जाने की तैयारी हो गयी।
औरत को सारी जिंदगी अपने सही होने का प्रमाण देना ही पड़ता है। आखिर एक 70-75 साल की डायबिटिक पेशेंट जिसको दो बार कीमोथेरेपी के दौरान हार्ट अटैक भी आ चुका था और कीमोथेरेपी नहीं झेल पायी। हालत बिगड़ गयी और दूसरे दिन वो चल बसी। इसी दौरान घर और हॉस्पिटल में माँ के कपड़े आते-ले-जाते हुए बड़ी बहिन ने पहले माँ की अलमारी की चाबी गायब की और फिर मेरे लॉकर की चाबी भी जो उन्हीं (माँ)की अलमारी में थी। मेरे पति की आँखें तब खुली जब बैंक में चाबी गुम जाने की complain के एक महीने बाद लॉकर तोड़ा गया और वो खाली निकला।कुछ इन्क्वायरी करने पे मेनेजर ने बड़ी बहिन के हस्ताक्षर दिखाए जिस पे माँ के मरने के 5 दिन बाद की तारीख थी। मैं अभी इस सदमे में ही थी कि पति ने इलज़ाम लगाया कि घर नहीं सँभाला गया तुमसे।
साभार: मेरी सहेली |
मैं तब बोली कि क्या यह घर मेरा था?
अगर था भी तो क्या मुझे अकेले ही संभालना था। तुम तमाशा लगाने के लिए रहे जिंदगी भर।
खैर...!
बड़ी बहिन के हक़ में छोटी बहिन और भाई भी खड़े थे।अब सबका अपना-अपना मतलब था।सब रिश्तेदारों के सामने भी मान लिया उसने कि उसी ने लिए हैं।कोई इस मामले में नहीं पड़ना चाह रहा था।क्योंकि गवर्नमेंट जॉब होने के कारण कितनों के illegal काम करवाती थी और बहुत से contacts थे उसके।देवर भी पुलिस का दलाल था।और बाकी उसके ससुराल के भी बहुत ऊंची पोस्ट पे थे।कुछ उसी बैंक में जहाँ मेरा लॉकर था।
पुलिस ने भी कोई केस दर्ज नहीं किया।उल्टा हम दोनों मियां-बीवीे ख़िलाफ़ एक प्रॉपर्टी जो 6-7 साल पहले बिकी थी कोई और आगे 4 बार बिक चुकी थी उसका मामला दर्ज कर लिया गया। लॉकर केस कोर्ट में जा चुका था बस उसे वापिस लेने के लिए हम पे pressure डाला जा रहा था हर तरफ से।न ही कहीं कोई सबूत काम आ रहे थे न ही पुलिस किसी की गवाही हमारी और से लेने को तैयार थी। बैंक ने भी लॉकर सम्बंधित और कागज़ देने से मना कर दिया जोकि हमने किसी तरह R.T.I. के through मंगवाए।
(क्रमशः)
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