आलोक झा लोकप्रिय युवा कथाकार हैं l विभिन्न
पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से इनकी जीवंत उपस्थिति दिखती है l बेहद सक्रिय बिंदास अल्हड़ व्यक्तित्व, ज़िंदगी का
रेशा रेशा महसूसने में यकीन l सम्प्रति केरल में शिक्षा
के अनगिन प्रयोग कर रहे हैं l पढ़िए इनकी ताज़ातरीन कहानी :
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आलोक झा |
किसी
के पास उसकी दस दिन पहले वाली तस्वीर हो तो उसे दिखाये कि वह कितना खुश था ! उसके
लब -ओ- लहज़े से लेकर चाल तक गज़ब मचल रही थी !
तो
आज उसे क्या हो गया ? यह सवाल उसे देखने वालों को उतना
परेशान नहीं कर पा रहा था जितना कि उसे ! बार बार उसे दोस्त का भेजा हुआ राहत
इंदौरी का शेर याद आ रहा था । वह बार बार व्हात्सेप खोल कर पढ़ रहा था –
लगेगी आग तो
आएँगे कई घर ज़द में
यहाँ पे सिर्फ़
हमारा मकान थोड़ी है !
यह
शेर दरअसल उसकी उस बात के जवाब में आया था जिसमें उसने अपनी पार्टी के जीतने की
खुशखबरी के साथ यह बात भी नत्थी कर दी थी कि ‘अब आएगा मज़ा ! अब दिखाएंगे कटुओं को’ । दोस्त ने जवाब में कुछ कहने के
बजाय यही शेर भेज दिया । उसने भी दोस्त की तरफ जोश जोश में एक जुमला फेंक दिया – ‘तुंहु साले कटुवै बन जाव’ मुँह फाड़कर हँसते हुए चेहरों के साथ
!
जितनी
खुशी हुई थी अपनी निज़ामत के आ जाने की सब काफ़ूर हुई जा रही थी । अपनी इसलिए कि
उसने इस निज़ामत के लिए दिन रात एक कर काम किया । हर संभव काम ! बाइक पर पार्टी का
झण्डा टाँग रैलियों में फिरने से लेकर फ़ेसबुक , व्हात्सेप पर ट्रोलिंग तक । जो लोग
उसकी पार्टी के नहीं वे दुश्मन बराबर ! यहाँ तक कि चमकी जिसे प्यार से वह छमकी
कहता है उससे मिलने का वक़्त नहीं मिलता था । बस कभी-कताल इनबॉक्स में बात हो गयी
तो हो गयी । बात भी क्या बस हाय –हेलो !
वह
कतई यह नहीं कहता कि ऐसा केवल उसी ने किया । इस तरह का काम वोलेंटियरों ने हर
विधान सभा में किए होंगे । और तो और स्वयं उसकी विधान सभा में ऐसे सैकड़ों लड़के थे
पेट-भात पर हुआं-हुआं करने वाले (सॉरी, हाँ-हाँ
करने वाले ) ! और ऐसे हुआं – हुआं करने वाले न होते तो पार्टी
जीतती क्या ! नोट – उट बंद करके कैसा नरक कर रखा था इन सबने !
अब
जब छमकी आ गयी है तो मूल किस्सा हो जाये –
छमकी
नाराज़ थी कि अपने छैला लाल पिछले तीन महीने से उसके साथ ठीक से बैठे नहीं हैं
बतियाना तो दूर की बात ! लेकिन, चुनाव खत्म होने बाद सुकून से बातें
होनी शुरू हो गयी । नाराजगी ज्यादा थी लिहाज़ा मान-मनौव्वल का दौर भी घंटों तक चला
होगा (यह केवल अनुमान है) । ऐसी ही बातचीत में तय हुआ कि गिनती
के बाद बाहर चलेंगे । बहुत बाहर नहीं तो कम से कम दिल्ली के आनंद
विहार से सटे इडीएम या पेसिफिक मॉल तक तो जा ही सकते हैं । साहब ने यह दिन दो
लिहाज से चुना था । एक तो इन्हें डर था कि जीतेंगे नहीं और न जीते तो ग़म को भुलाने
का इतना बढ़िया इंतज़ाम हो नहीं सकता दूसरे अगर जीत गए तो उसका आनंद छमकी के साथ
उठाया जाएगा ! हो सका तो इंडिया गेट चलकर शाम की लाइटिंग देख लेंगे (हालांकि छमकी
के माँ –बाप 7 बजते ही फोन करने लगते हैं फिर भी
छमकी कोई न कोई झूठ बोल ही लेगी ) !
गिनती
के दिन तो कमाल ही हो गया ! छैला लाल को क्या उनकी पार्टी के बड़े बड़ों को उम्मीद
नहीं थी कि यह चमत्कार हो जाएगा । उम्मीद से भी ज्यादा ! इस पर कौन खुश नहीं होगा
! छैला गज़ब धमाल मचाये रहा दिन भर , गर्दा किए रहा ! एक बार छमकी का फोन
भी आया लेकिन उस धूम-धड़क्के में कहाँ आवाज़ सुनाई देती है । वह फिर से उस शोर में
घुल गया ! सब निपटाते निपटाते रात हो गयी तो वह घर लौटा । थका इतना था कि छमकी
क्या उसे अपनी खबर भी नहीं थी ऊपर से शराब का नशा ! पार्टी की जीत में पार्टी !
ज़ाम आफ्टर ज़ाम वाला मामला था आज तो !
सुबह
उठा तो याद आया कि छमकी की जिस नाराजगी को मिटाने के लिए उसने मिलने का प्लान
बनाया था वह और बढ़ गयी है क्योंकि मिलना तो दूर वापस फोन तक नहीं कर पाया ! प्रेमी
जानते होंगे कि कैसी होती है इस तरह की नाराजगी और अनाड़ियों के लिए लिखने का कोई
मतलब भी नहीं है ।
साहब
प्रेम तो प्रेम है नाराजगी कब तक रुकेगी ! होते-हवाते दो चार दिनों के भीतर बातें
होनी शुरू हो गयी और सप्ताह पूरा होने पर घूमने वाला कार्यक्रम भी बन गया ! सरकार
बन गयी थी सो पार्टी का झण्डा बाइक में खोंसकर चलना अब स्टेटस सिंबल ठहरा ! बाइक
निकली आगे छैला पीछे छमकी और सबसे आगे पार्टी का झण्डा लहराता
हुआ, मन भीतर से प्रफुल्लित ! छैला सोच रहा था इसी सुख के लिए तो उसने दिन
रात एक कर दिया था !
दिन
गज़ब रहा । खूब घूमा फिरी के साथ साथ भरपूर और तरह तरह का खाना साथ में ढेरों
सेल्फी ! वो छमकी के पिताजी कॉल पर कॉल नहीं करते तो इंडिया गेट की पीली रोशनी में
बैठ कर छमकी की फोटो ली जाती , छमकी साबुन के पानी के बुलबुले
उड़ाती वह देखता , वे इंडिया गेट पर स्केच बनाने वाले बैठते हैं न उनसे छमकी का स्केच
भी बनवाता । सब धरा रह गया छमकी के बाप के चक्कर में ! इसके बाद भी जितना मजा आया
न वह बहुत था । कहिए कि दिन बन गया ! दिन बन जाने से बाइक भी धीरे धीरे मगर लय में
चल रही थी !
बाइक
अभी हाइवे से विजयनगर के लिए मुड़ने ही वाली थी कि कुछ लोगों ने उसे रोक लिया ।
बिना पूछ ताछ में समय गँवाए छैला को दो चार डंडे धरा दिए । उनके साथ जो लेडी थी
लगी छमकी के मुँह में लिपटा हुआ दुपट्टा उतारने । प्रेमी के साथ बाइक पर सवार लड़की
को देखने के लिए और प्रेमी पर दो चार हाथ जमा देने की ख़्वाहिश रखने वाले लोग भी आ
गए दो चार ! जिन लोगों ने इन्हें रोका था उनमे से एक को फिर से ताव आ गया उसने
छैला को गिन गिन के चार और छमकी को दो डंडे मारे और केवल एक गाली दी – ‘साले रोमियो –जूलियट’ ! बहुत सी माफी और माँ बाप के नंबर देने पर दोनों को छोड़ दिया गया ।
छैला में इतनी हिम्मत नहीं थी कि दर्द , दुख और गुस्से से फुनकती छमकी से घर
कैसे जाओगी भी पूछे वह भी उन लोगों के सामने !
पिटे
हुए रोमियो को दो दिनों के बाद जूलियट का फोन आया । पिटी हुई तो वह भी थी लेकिन
उससे ज्यादा बड़ी और बुरी खबर थी उसके पास । उसने छैला को बताया कि माँ और बाप
दोनों के फोन पर उनका एमएमएस पहुँच गया और आगे से उससे मिलने की कोशिश वह न ही करे , फोन भी न करे । साथ में ‘प्लीज़’ भी लगाया था । इसकी हालत और खराब हो गयी लगा गर्मी बढ़ रही है चारों
ओर से और वह जल रहा है !
किसी
तरह हिम्मत कर के छैला ने अपने उसी राहत इंदौरी का शेर भेजने वाले दोस्त को सारा
किस्सा साझा कर दिया ! दोस्त भी था जल्लाद ! हँसते हुए बड़े बड़े चेहरे बना कर भेजे
। लेकिन जब दया आई तो फिर से राहत साहब की उसी ग़ज़ल का एक शेर
भेज दिया जिसका शेर पहले भेज चुका था । शेर कुछ यूं रहा –
जो आज साहिबे
मसनद हैं कल नहीं होंगे
किरायेदार हैं
ज़ाती मकान थोड़ी है !
छैला
को शेर पढ़ते ही भयंकर गुस्सा आ गया । इतना गुस्सा कि दोस्त को ब्लॉक ही कर कर दिया
वह भी इस टिप्पणी के साथ - साले ज़ाती मकान तो नहीं है पर पाँच साल तक
ऐसे ही रहेंगे बे इसे झेलते हुए ! दोस्त तो ब्लॉक था कैसे कहता – किए भी तुम्ही हो !
(आलोक झा )
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